Saturday 27 October 2018

आया चुनाव सबकी बड़ी तेज तैयारी हैं...

आया चुनाव सबकी बड़ी तेज तैयारी हैं,
है रोड शो कहीं तो कहीं रैलियां भारी हैं,
सबको ही दिखानी है बड़ी भीड़ है पीछे,
चिडियों को किराए पे जमा करते शिकारी हैं।

हर कोई दूसरे को बड़ा चोर बोलता है,
पर अपनी चोरियों पे कोई मुंह न खोलता है,
कीचड़ की वाँलीवाल यहां खेलते सभी,
कीचड़ उछालने की प्रतियोगिता जारी है।

वादों की लाँलीपाँप पुरानी चटा रहे हैं,
अबकी करेंगे काम कसम फिर से खा रहे हैं,
वैसे तो  झूठ आप कभी बोलते नहीं,
वादों को भूलने की मगर खास बिमारी है।

जनता के समर्थन से ये जनता को लूटते हैं
हमको समझ के नींबू हमसे रस निचोड़ते हैं
जो हमको दिखाते हैं पांच साल बराबर,
ठेंगा वहीं इन्हीं को दिखाने की ये बारी हैं।

Kavi ya Halwai

शब्द का मैदा तेल की स्याही,
कागज जैसे गरम कढाई,
चीनी भावों भरी जलेबी,
कविता बना रहा हलवाई(FB)

Sunday 7 October 2018

हमरे गांव के पप्पू भइया...


हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,
युवा है वो अडतालीस के पर,
लगता नहीं कि बडे हो गये।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,

हैं युवराज इलाके के ये,
राज पुराना साल था सत्तर,
जबसे नया प्रधान ये आया,
कर दी इनकी छीछालेदर,
पंचायत के थे फूल गुलाबी,
आम ये सबसे सडे हो गये ।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,

लिखा हुआ भाषण ये पढ़ते,
सुनकर जिसको सारे हँसते,
गाड़ी इनकी राजा बाबू,
कुर्ता लेकिन फटा पहनते,
स्वांग कला मे कुछ सालों से,
महारथी ये बडे हो गये ।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,

खुद कुनबा इतिहास घोटाला,
पर प्रधान को चोर बताते,
जोड़ तोड़ के घुमा के बातें
जनता को झुठा भडकाते,
आया पास चुनाव तो भइया,
शिव के भक्त ये बडे हो गये ।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,

बड़ी लडाई लडने को ये,
कमर कलेजा ठान चुके हैं,
अभी तलक की सारी जंगे,
बुरी तरह से हार चुके है,
फूट रहे है एक एक कर,
भरे हुए जो घड़े हो गए ।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये,


बना रहे है सबको साथी,
लालटेन और साइकिल हाथी,
ममता दीदी भी चिल्लायें,
आओ मिलकर साथ हरायें,
एक शेर से लडने को फिर,
सारे गीदड़ जुड़े हो गये ।।
हमरे गांव के पप्पू भइया,
परधानी को खडे हो गये

Friday 5 October 2018

Halka Fulka...

हर तरह के रोग का उपचार होना चाहिए,
दर्द से हर मुक्त ये संसार होना चाहिए,
इश्क मे गालिब कोई फिर से निक्कमा न बने,
प्यार के टीके का अविष्कार होना चाहिए,(FB)


बहुत अनजान हूँ, मैं शायरी गीतों से गजलों से,
ये दिल का हाल है, जो गा के तुमसे कह रहा हूँ मै,
देना दाद तुम चाहेबडी कोई शायरी जैसे,
मगर जो दिल को छू जाए, तो थोड़ा मुस्कुरा देना।।(FB)



यूँ तो कहने को कई साल, बडा हो चुका हूँ मै
मगर वो उम्र सत्रहवीं जो कभी छूटती नहीं,
तूझें जो कह पाये उस बरस कई कोशिशों मे भी
उसी कोशिश की फिर खवाहिश मुक्कमल टूटती नही(FB)



रही कई रात आँखों में, मेरे मीठी सी बैचेनी
मेरी आँखों मे आँखें डाल कर, कुछ कह गये जो तुम
रहा एहसास चीनी सा, कई दिन होंठ पे मेरे,
मेरे होंठों को होंठों से, जो थोडा छू गए थे तुम।।(FB)



शराबों का तेरी यादों से, झगड़ा है बहुत गहरा,
एक चढती नहीं, एक उतरती नहीं।।(FB)



नशा भरपूर करने की, तलब मे की है तैयारी,
तेरी यादों की पोथी खोल के मैं साथ बैठा हूँ,
रहेगा होश कायम, सुबह तक जानते हैं हम
तेरी यादों के बीचोबीच, सारी रात बैठा हूँ ।।(FB)




अपनी किस्मत पे इतरा, जिंदा बकरे,
छुरी तेरे लिए भी तेज, कहीं हो रही होगी
हुनर बेकार सब होगें, हुनर के सामने उसके,
तुझे तेरी ही ताकत से, वो "बाली" है हरायेगी,(FB)



बेजान से हो जाते थे, जिसे देखकर ही हम,
मेरी पहली जान, बहुत जानदार थी ।।(FB)



बहुत आते थे मेरे घर, मोहल्ले के सभी घायल,
मेरे दोनो पडोसो़ मे, कुछ ऐसे लोग रहते थे ।।



आधी वाली विदा हुयी, थाम के जब पूरे का हाथ,
खुलकर जीजा रो पाये, जीजी खडी हुयी थी साथ।।(FB)


मुझको उसके प्यार का चक्कर, चक्कर पे चक्कर कटवाये,
तबके गिरे उठे अबतक, मुझसे वो ऐसे टकराये,



गुजरे जो एक बार फिर, मेरी गली से वो,
सालों का वक्त, चंद पलों मे गुजर गया
पहचान भी लिया , और हंसे भी जरा सा वो,
सालों का वक्त, मेरी उमर से निकल गया ।।


ये मेरा अक्स छोटा सा, छुपा है चोर ये रुस्तम,
हंसी से खेल से अपने, चुरा लेता है सारे गम।।(FB)


वो तेरा राजमा चावल..

वो तेरा राजमा चावल, नहीं था खास जिसका स्वाद,
हटाया गाल से तेरे, इसलिए आज तक है याद,
वो तेरी चैन साइकिल की, नहीं करने की कोई बात
फंसी कुछ इसतरह चुनरी, रह गया आज तक जो याद
कैमिस्टी की वो कोचिंग क्लास, दिलो मे कैद जिसकी याद,
तूझे गाने की सूरत मे, जब कहा चौदहवीं का चांद

रात भर भीगता रहा..

रात भर भीगता रहा, तेरी यादों की बारिश मे,
झरोखा उन दिनों का कल, खुला गलती से रह गया
बताया दिल को सौ सौ बार, नहीं बच्चा रहा अब तू,
मगर बच्चा करें क्या जो, बडा गलती से हो गया

वो गलियाँ छोड आया हूँ, भरम कई बार ये टूटा,
कहीं यादों का टुकड़ा जो, बचा गलती से रह गया
जला लेतें हैं अपने को, दबी सी आग के धोखे,
बुझी राखो मे शोला जो, छिपा गलती से रह गया

तेरी बातें कहेंगे सुनेंगे, ठान बैठे थे,
नहीं रोका गया वो जिक्र, जो गलती से हो गया ।।
हर एक तस्वीर को तेरी, मिटा पूरी तरह डाला,
मगर चेहरा तेरा दिल पे, छपा गलती से रह गया ।।
छपा दिल पे तेरे चेहरे का तिल, गलती से रह गया।।(FB)

उठ जाओ रोना बंद करो, रोने से क्या हासिल होगा...


कोई रूठ गया, कोई छूट गया
कुछ टूट गया, कोई लूट गया
रिसते घावों को गिनने,  अब क्या दिल होगा
उठ जाओ रोना बंद करो, रोने से क्या हासिल होगा।

कहीं हार हुयी, कई बार हुयीं
कुछ भूल हुयीं, प्रतिकूल हुयीं
गिर गिर फिर उठने से ही तो, तू चलने के काबिल होगा
उठ जाओ रोना बंद करो, रोने से क्या हासिल होगा।

कभी छति हुयीं, जो अति हुयीं
कुछ डूब गया, सम्पूर्ण गया
पतवार छोड़ के रखने से, क्या पास कभी साहिल होगा
उठ जाओ रोना बंद करो, रोने से क्या हासिल होगा।

जो चाहे है, तो राहें हैं
जो बाकी है, वो काफी हैं
सोया विश्वास जगाने से, तू फिर अपनी मंजिल होगा
उठ जाओ रोना बंद करो, रोने से क्या हासिल होगा।

स्वच्छ और स्वस्थ दुनिया का स्वयं नक्शा बदल डाला..


स्वच्छ और स्वस्थ दुनिया का स्वयं नक्शा बदल डाला
हमारे लोभ आलस ने, प्रकृति का नाश कर डाला।

हर एक जीवन, वृक्ष भोजन, प्राण ऊर्जा का संवाहक
प्रमुखतम तत्व जीवन का, कृत्रिम अनुपलब्ध जो अब तक
सिमटते भू जलाशय की, चेतावनी जानकर भी क्यों
तरल जीवन इकाई को, सरलता से बहा डाला

हवन सामग्री, धूप दीपक, मूर्ति प्रसाद पुष्प माला
बचा पूजन मे जो, वो पूज्य नदियों मे चढ़ा डाला
बहा अवशिष्ट शहरों का, घरों का कारखानों का
अविरल साफ धारा को, कर दिया संकुचित नाला

हवा मे प्राणवायु का, निरन्तर गिर रहा स्तर
धुआं हैं धूल है अपने, सुबह का शाम का सहचर
बदल ईंधन को धुएं मे, हवा को कर दिया काला
कवर हर एक चेहरे पे, व्यक्ति रोगी बना डाला

खेत को भी, बगीचे को भी, हमने कर दिया दूषित
रासायन के प्रयोगो से, फसल को कर रहे विकसित
जहर भर के फलों मे, दूध सब्जी मे अनाजों मे
मनष्यो ने मनुष्यों को, बहुत बीमार कर डाला

प्रचंड मौसम हवा बारिश, प्रकृति चेतावनी जैसे
समय है शेष, परिवर्तित करें जीवन के हर हिस्से
नहीं की कद्र इसकी जो, मिला उपहार मे हमकों
हमारे वंशजों को बस मिलेगा, रोग विष ज्वाला

करें नदियों को गंदा, बहाये व्यर्थ मे जल
लगायें पेड़ पौधों को, बचायें ऊर्जा हर पल
जो हो उद्देश्य सबका ही, धरा को सींचने वाला
ये माँ ऐसे ही पालेगी, जिस तरह आज तक पाला