Monday, 29 April 2019

उसे मैं आज भी मुंह बांध के आवाज देता हूंँ,
सुनाई भी नहीं देता उसे, मैं कह भी लेता हूँ।

हैं कुछ तकलीफ जिनकी जिंदगी को भी जरूरत है,
वो दरियाँ डूबकर जिनमें मैं जिंदा रह भी लेता हूंँ।

हर एक दर्द का मरहम नहीं मिलता बाजारों में,
कभी खुद चोट देकर खुद मजे से सह भी भी लेता हूंँ।

वह मेरा टाइटेनिक था नहीं पहुंचा किनारों पर,
मगर नींदों में में थोड़ा साथ उसके बह भी लेता हूंँ।

--कृपाल

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