Monday, 29 March 2021

क्यों ना अब मर जाऊँ मैं

सोच रहा हूँ चलते चलते दूर सफर पर जाऊँ मैं,

जीने में कुछ जान नहीं तो क्यों ना अब मर जाऊँ मैं,


दोस्त दुश्मनों संबंधों में फर्क नहीं कुछ लगता है,

जी करता है सबसे झूठी तारीफें करवाऊँ मैं,


दौलत शोहरत चाहत इज्जत बहुत कमाई कर ली है,

लुट जाने से पहले क्यों ना हाथों से लुटवाऊँ मैं,

 

यूं तो सुनता रहा सुनाता गीत ग़ज़ल हर महफिल मे,

एक शाम अब याद में अपनी दुनिया को सुनवाऊँ मैं,


--कृपाल

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