Thursday 22 November 2018

Halka Fulka2

रंगा दो लाल हर दीवार, सरकारी मकानों की,
शर्म छुप जाये शायद जो मिली, किश्तों मे पीकों की।।

वो दो दोनों की मजबूरी,
वो दोनो को जरूरी हैं।
मियाँ बीवी के रिश्ते की,
यही पहचान पूरी है।।

वो इसकदर छाये है महफिल मे आजकल
घडियों को देखने की भी फुरसत नहीं मिलती

पुरानी याद के बक्से नहीं खोला करो मेरे
दोबारा बंद करने मे बहुत तकलीफ होती हैं।।

आग की गर्मी सर्दी मे भी,
लगातार हम सेंक न पाये,
वो जालिम इतना सुंदर था,
एकटक उसको देख न पाये। (FB)

न आंखे थी तेरी चुंबक,
न मेरा दिल था लोहे का,
न जाने फिर क्यों चिपका हैं,
बेचारा आजतक उनसे ।।((FB)

हर तरह के रोग का, उपचार होना चाहिए,
दर्द से हर मुक्त, ये संसार होना चाहिए,
इश्क मे गालिब कोई, फिर से निक्कमा न बने,
प्यार के टीके का, अविष्कार होना चाहिए ||(FB)

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