कभी घड़ी पर निगाह करती,
कभी फोन वो दो चार करती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
है बिखरा घर का हर एक कोना,
है जूठे चम्मच थाली भगोना,
झलक रहा है चेहरे पे उसके,
वो चाय को किस कदर तरसती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
पति और बच्चों पे चिल्ला रही है,
छोटी सी बातों पे झल्ला रही है,
डरे हुए है खामोश ऐसे,
कर्फ्यू मे जनता जैसे हो डरती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
बदल गया सब जो घर वो आई,
मुस्कान संग अपने बीवी की लाई,
नहीं मेड है वो तो कोई परी है,
बीवी के जो सारे कष्टों को हरती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
कभी फोन वो दो चार करती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
है बिखरा घर का हर एक कोना,
है जूठे चम्मच थाली भगोना,
झलक रहा है चेहरे पे उसके,
वो चाय को किस कदर तरसती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
पति और बच्चों पे चिल्ला रही है,
छोटी सी बातों पे झल्ला रही है,
डरे हुए है खामोश ऐसे,
कर्फ्यू मे जनता जैसे हो डरती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।
बदल गया सब जो घर वो आई,
मुस्कान संग अपने बीवी की लाई,
नहीं मेड है वो तो कोई परी है,
बीवी के जो सारे कष्टों को हरती,
है बेकरारी की इंतहा जब,
वो मेड का इंतजार करती।