कुछ भंग चढ़ी कुछ रंग चढ़ा,
होली का यूं हुड़दंग बढ़ा,
गालों से गाल रगड़ उनके,
गालों पे प्रीत का रंग मढ़ा।
वो दंग हुईं फिर ज़ंग हुई,
सखियों की टोली संग हुई,
मधुमक्खी के हमले जैसी,
हालत मेरी बदरंग हुई।
पर याद रही वो साथ रही,
हर होली उसकी बात रही,
फिर वही पड़ोसन बचपन हो,
दिल में ऐसी एक आस रही।
फिर भंग चढ़े फिर रंग चढ़े,
होली का बस हुड़दंग बढ़े,
भाई-भाई की नफ़रत पर,
कुछ प्रेम शांति का रंग चढ़े।
भाई-भाई की नफ़रत पर,
कुछ प्रेम शांति का रंग चढ़े।
--कृपाल 😎
होली का यूं हुड़दंग बढ़ा,
गालों से गाल रगड़ उनके,
गालों पे प्रीत का रंग मढ़ा।
वो दंग हुईं फिर ज़ंग हुई,
सखियों की टोली संग हुई,
मधुमक्खी के हमले जैसी,
हालत मेरी बदरंग हुई।
पर याद रही वो साथ रही,
हर होली उसकी बात रही,
फिर वही पड़ोसन बचपन हो,
दिल में ऐसी एक आस रही।
फिर भंग चढ़े फिर रंग चढ़े,
होली का बस हुड़दंग बढ़े,
भाई-भाई की नफ़रत पर,
कुछ प्रेम शांति का रंग चढ़े।
भाई-भाई की नफ़रत पर,
कुछ प्रेम शांति का रंग चढ़े।
--कृपाल 😎
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