दिल की बातें अब जुबा आंखें नहीं करती,
निभ रहे हैं दिल के रिश्ते उंगलियों से सब।।
प्यार का भी मोल थोड़ा कम हुआ तो है,
सेल में हर ओर बिकते उंगलियों से सब।।
बचपना मैदान मैं मुश्किल से दिखता है,
अब खिलाड़ी रोज बनते उंगलियों से सब।।
वो सड़क पर मर गया, थी चोट मामूली,
जिसको सहारा दे रहे थे उंगलियों से सब।।
पैर छूने का कोई सिंबल नहीं वरना,
मां बाप के भी पैर छूते उंगलियों से सब।।
--कृपाल
No comments:
Post a Comment