Friday 5 October 2018

मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ...


मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ

हर गांव गली मोहल्ले मे, कई घरों कई दीवारों पे,
हर मोड़ सडक चौराहे पे, कुछ बसों पे और कुछ कारों पे,
हर ओर लगे विज्ञापन पर, जब जब मैं नजर टिकाता हूँ,
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

हर मुख्य पृष्ठ हर बैक कवर, हर पेज के कोने कोने पर,
विज्ञापन से भरी पत्रिका, और अखबार के होने पर,
मै बिना प्रश्न जब जब इनपर, अपना कुछ मूल्य गंवाता हूँ
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

हर मनोरंजन के साधन मे, व्यवधान निरंतर रहता है,
खेल फिल्म गाने खबरें, विज्ञापन से कम लगता हैं
जब FM या TV चैनल के मै एड ब्रेक्स सह जाता हूँ,
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

हर वाँल पेज या एप कोई, इनसे रहा अछूता हैं
यूट्यूब वीडियो भी आखिर, चलते चलते कुछ रूकता हैं,
जब इंटरनेट की दुनिया मे, कोई पाँप लिंक दबाता हूँ
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

हर सभा गोष्ठी सम्मेलन मे, हर सार्वजनिक आयोजन मे
हर छोटे बडे समारोहों के, प्रायोजक के प्रयोजन मे
हर बात के आगे पीछे जब, एक नाम लगा मैं पाता हूँ
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

हर व्यवसायिक केन्द्र ही बस, अब नहीं रहा खरीदार मेरा,
हर नेता दल और सरकारें भी करती हैं व्यापार मेरा
जब युवा सोच और अच्छे दिन का हिस्सा मैं बन जाता हूँ
मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ, मैं थोड़ा सा बिक जाता हूँ।।

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