जो
लिखा मस्तिष्क मन ने, व्यक्त वाणी ने किया,
वो
मेरी क्षमता नहीं, माँ शारदा आशीष हैं ।।(FB)
समय की घोर
कालिख को, चमक का अंत
मत समझो,
वो गहरी खान
मे कोयले की,हीरे को
छुपाता है।।
बहुत नायाब है,
खुद दौडकर मंजिल
पंहुच जाना,
किसी का साथ
दे, मंजिल तक
पंहुचाना करिश्मा है।।
दिलों के भी
समंदर मे, कभी तूफान हैं
जायज,
खलिश बाहर न
निकली तो, कत्ल
बन गांठ कर देगी।।
कहें हम क्या
खता तेरी, सुने
तेरी शिकायत क्या,
चलो मिल ले
गले जी भर, ये दिल
खुद ही निपट लेंगे।।
बनायीं हैं कई
ऊँची, ईमारत अपने
हाथों से,
मगर कोना भी
उस जैसा, नहीं
अपना बना पाया।।
खिलायें हैं निवालें
खूब, पेट भर भर के
दुनियां को,
मगर हर रोज
भर के पेट अपना सो
नहीं पाया ।।(FB)
नहीं आवाज कुछ
करतीं, टंगी रहतीं
है कीलों पें
सुनो खामोश दिल
से तो, बहुत
कुछ बोलती हैं
यें
फर्क आबाद और बर्बाद में, न रह गया काफी,
ये है बर्बाद आबादी,या है आबाद बर्बादी ।।(FB)
हटा दो शब्द को पीछे, लगा दो पंक्ति को नीचे,
किसी की मूल रचना को स्वरचित काव्य हैंं कहते ।
कभी शैली कभी मुक्तक, कभी शब्दों की गहराई,
चुराकर काव्य, सम्मानित कवि ये हो नहीं सकते ।।(FB)
पडोसी है मेरा फिर भी वो मुझसे रंज रखता है,
मेरी हर हार पे खुशियाँ मनाता तंज कसता है,
मेरा दुश्मन है फिर भी मानता है उसके लोहे को,
दबे मुँह मेरे चौकीदार की तारीफ करता है ।।(FB)
फर्क आबाद और बर्बाद में, न रह गया काफी,
ये है बर्बाद आबादी,या है आबाद बर्बादी ।।(FB)
हटा दो शब्द को पीछे, लगा दो पंक्ति को नीचे,
किसी की मूल रचना को स्वरचित काव्य हैंं कहते ।
कभी शैली कभी मुक्तक, कभी शब्दों की गहराई,
चुराकर काव्य, सम्मानित कवि ये हो नहीं सकते ।।(FB)
पडोसी है मेरा फिर भी वो मुझसे रंज रखता है,
मेरी हर हार पे खुशियाँ मनाता तंज कसता है,
मेरा दुश्मन है फिर भी मानता है उसके लोहे को,
दबे मुँह मेरे चौकीदार की तारीफ करता है ।।(FB)
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